अन्य सौरमण्डलों में जीव-सृष्टि
जिज्ञासा ५७- आचार्य सत्यजित् जी सादर नमस्ते! जिज्ञासा समाधान में अनेकों समस्याओं का सामाधान आपने ‘परोपकारी’ पाक्षिक द्वारा किया। जो एकदम सही लगता है। एक जिज्ञासा और....।
पढऩे से पता चलता है, डेढ़ अरब सूर्यमण्डल हैं। ब्रह्माण्डों की संया भी एक अरब से अधिक है। हमारा सूर्य सबसे छोटा है। इससे लाख गुणा बड़े और सूर्य हैं। ऐसा लगता है हर सूर्य के इर्द-गिर्द कोई सृष्टि होगी। वहाँ भी सभी जीव, जन्तु, नदी, पहाड़ और मानव भी होंगे। ऐसा अनुमान किया जाता है। ईश्वर की लीला अपरपार है। कहते हैं चौरासी लाख योनियों में कर्म के आधार पर जीव भ्रमण करता है। अच्छे कर्मों के आधार पर मानव योनि में आता है। तो या हमारे सूर्य के अलावा जो प्रकाशित सौरमण्डल हंै, उनमें प्राणी हंै, प्राकृतिक सुन्दरता है? जो जीव मरणोपरान्त शरीर छोड़ता है, तो वह इस ब्रह्माण्ड में भी कर्मफल भोग के निमिा जाता है? योंकि वहाँ भी उसी परमात्मा की रचना है। और सब उसी के प्राणी हैं। जरा जोर लगाना पड़ता है फिर भी हल नहीं मिल रहा है। आपके उार की प्रतीक्षा में। धन्यवाद।
-सोनालाल नेमधार, कारोलिन, बेल-पुट, मोरिशस
समाधान- आप की युक्ति-ऊहा बिलकुल ठीक है। अन्य सौरमण्डलों आकाशगंगाओं में भी अवश्य प्राणी सृष्टि माननी चाहिए। साथ ही यह मानना भी उचित है कि कर्मानुसार कोई भी आत्मा किसी भी पृथ्वी पर, किसी भी सौरमण्डल में, किसी भी आकाशगंगा में जन्म ले सकता है। सारा ब्रह्माण्ड एक ईश्वर की ही रचना व व्यवस्था है। सब आत्माओं के लिए एक समान न्याय व्यवस्था है। एक ईश्वर ही सारे ब्रह्माण्ड का संचालक है, स्वामी है। उसकी सामथ्र्य भी अनन्त है, वह सर्वव्यापक है, अत: वह कर्मानुसार किसी
भी आत्मा को कहीं भी यथायोग्य जन्म देने का अधिकार व सामथ्र्य दोनों रखता है। ऐसा मानने में कोई सैद्धान्तिक हानि नहीं है, अपितु पुष्टि ही है।