मन की गति
जिज्ञासा - जैसे प्रकाश की गति ३ लाख किमी/सेकिण्ड है वैसे मन की गति कितने कि.मी./सेकिण्ड है।
समाधान- मन स्वयं तो एक ही स्थान पर रहता है। मन सूक्ष्म-इन्द्रिय है, वह अपने गोलक स्थूल-इन्द्रिय मस्तिष्क में रहता है। ज्ञानेन्द्रियों सहित तन्त्रिका-तन्त्र (नाडिय़ों) के माध्यम से वह संपूर्ण शरीर में संकेत भेजकर कर्मेन्द्रियों में यथाशक्य क्रियायें करने में समर्थ होता है। यह संकेतों का प्राप्त करना व भेजना बहुत तीव्र गति से होता है। इसे सामान्य रूप से प्रकाश की गति के समान कह दिया जाता है, किन्तु इसकी गति प्रकाश की गति से कुछ न्यून होती है।
मन में जब दूर देश का स्मरण/चित्र उभरता है तो इसका यह अर्थ नहीं कि मन वहाँ पहुँच जाता है। वह तो विचार-ज्ञान-स्मृति मात्र से ऐसा होता है,मन तो शरीर में ही रहता है। जिस प्रकार मन भूतकाल व भविष्यकाल की घटना-वस्तु का स्मरण करते समय वास्तव में भूत-काल या भविष्यकाल में नहीं जाता, क्यों की भूत व भविष्य तो अभी हैं ही नहीं, भूतकाल जा चुका है,भविष्यकाल अभी आया नहीं है, पुनरपि हमें प्रतीति ऐसी होती है कि मन भूत-भविष्य में चला गया है। इसी प्रकार मन के दूर देश-वस्तु तक पहुँचने की भी हमें प्रतीति मात्र होती है, वास्तव में मन वहाँ जाता नहीं है। अत: मन में इस प्रकार की देशान्तर गति नहीं स्वीकारी जा सकती, फिर उसकी गति के मापन का प्रश्न ही नहीं रहता।